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Friday, August 2, 2013

Hindi poem और कितना तोड़ोगे?

> Every day we are making new boundaries and making/ creating more
> separations. Just a thought with feelings,
>>

>> और कितना तोड़ोगे? समय है फिर से जोड़ लो धर्म की आड़ में तोड़ा और
>> तोड़ा हमने, तीनों टुकड़ों को कहीं का नहीं छोड़ा हमने भाषाओं की
>> दिवार खड़ी कर दी हमने, पता नहीं पूरे किये किसके सपने?
>> धीरे धीरे सारा देश यों बट जायेगा,
>> ना रहेगी ज़मीन आसमान भी बट जायेगा
>> हर घर में लहराता तो वही तिरंगा होगा,
>> पर रोता इसमें वही भूखा और नंगा होगा ये मेरा है ,ये तेरा है, सबक़े
>> सर ये जूनून हैै, मारो काटो मिटा दो, सर पर ख़ून है एक दिन अभागा
>> ईतहास फिर से दुहरायेगा, कोई मुहम्मद तुग़लक़ और ईस्ट ईनडिया कम्पनी बन
>> के आयेगा, सारा कुछ फिर लूट के ले जायेगा फिर ईंतजार होगा किसी गांधी
>> और सुभाष का, जो शायद इस बार हमें , हमारी मानसिक ग़ुलामी से छुडायेगा
>>

>> अरुण कुमार

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