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Thursday, August 22, 2013

Our Dowrry System and Its outcome (Hindi Poem)



Our Dowrry System and Its outcome,
हमारा दुर्भाग्य पूर्ण दहेज प्रथा और इसके परिणाम



चंद पल का फासला मेरी दुनिया बदलने वाली थी........
मैं खुश था दुनिया भर की खुशियाँ मिलने वाली थी,
बिटिया की चाह मन में मैं था थी पत्नी नींद में लेटी हुई है.....
माँ ने पास आकर कहा मुबारक हो घर में बेटी हुई है......................


मैं था निःशब्द मैंमेरी मनोकामना सिद्ध हो गयी,
आस थी जिनको बेटे की बेटी उनके विरुद्ध हो गयी,
मैं खुश था की मैं एक बेटी का बाप बन गया
मेरे अरमानों को जैसे एक नया पंख लग गया........

कल-कल करती उसकी आवाज अब वो खड़ी होने लगी.....
मैं बहुत खुश मेरी बेटी अब लता सी बड़ी होने लगी है...
अपनी माँ और दादी की झलक है उसमे......
मेरा भिमान मेरी इच्छा अब तलक है उसमे....

अपनी हर ख़ुशी मैंने उसमे समेटी हुई है.....
मुबारक हो मुबारक हो घर में बेटी हुई है

थी इच्छा उसमे डॉक्टर बनने की आगे बढ़ने की,
सेवा का भाव था आदत थी उसमे जुर्म से लड़ने की,
मन प्रफ्फुल्लित था उसकी कामयाबी निहार कर,
सुबह देता था आशीर्वाद मैं उसकी नजर उतार कर......

मेह्नत से उसने अपना वो मकाम पा लिया....
डॉक्टर की परीक्षा में अव्वल नाम पा लिया.......
है खुश परिवार मेरा बेटी सबका मान बनी..........
उसकी प्रतिभा मेरी दुनिया मेरा सम्मान बनी.....

मेरी बिटिया आज सबकी चहेती हुई है.....
मुबारक हो घर में आज बेटी हुई है...........

रहा पांच साल दूर उससे मैं बहुत उदास था....
उसके वापस आपने का पल पल बढ़ रहा विश्वास था......
एक रोज चिट्ठी आई वो कल आने वाली है .......
मैंने घर में ख़ुशी मनाई यो जैसे कोई दिवाली है..............

डॉक्टर बनी बेटी को मैं निहारता रहा......
अपनी 'ख़ुशी' को डॉक्टर कहकर पुकारता रहा.....
थी बहुत खुश सपना पूरा कर पायी वो....
अपने विश्वास से मेरे अंचल को खुशियों से भर पायी वो..............

सयानी बेटी की अब शादी भी करानी थी.............
मुझे बस अब कन्यादान की रस्म निभानी थी......
अनेकों देखे रिश्ते पर मन समझा कोई,
बेटी की पसंद पर नही थी मुझको आपत्ति कोई......

पुत्री की पसंद से उसका विवाह निभाना है ....
उसके स्वर्णिम भविष्य का रास्ता भी दिखाना है ....
लड़के के परिजन थे सज्जन बहुत लगे भले थे....
ऊंचे कुल अच्छे संस्कारों में शायद पले थे.......


बुधवार का वो दिन शादी की रात गयी
सोच रहा था पिछला की द्वारे बरात गयी.....
सब रस्मे निभाकर थोड़ा आराम कर लिया....
बेटी की यादों को सहेज अपने नाम कर लिया.....

अगले साल गुरुवार का दिन वो भुला नहीं पाता ....
उस दिन की याद कर खुद को सुला नहीं पाता ...
था कसूर मैं एक बेटी का बाप था.......
बेटी होना क्या इस देश में अभिशाप था......



प्रताड़ित करने लगे वो लोग जो लगे भले थे.....
पता नहीं था संस्कार उनके पानी के बुलबुले थे....
सताने लगे उसको वो किस बात पर जाने ...
मारने की उसको नित नए खोजते बहाने......

थी क्रूरता उनमे बर्बरता को सहेज या था ....
बेटी को खुश रखेंगे कहकर बहुत दहेज लिया था.......
अधमरा कर दिया मेरी फूल सी गुडिया को....
पंजरे में कर दिया कैद आजाद चिड़िया को.......

पता लगा तो मैं अचानक उसके घर जाने लगा....
घर से निकलता धुंआ मुझे बहुत डराने लगा....
जला दिया बेटी को महज दहेज़ के लिए.....
रोया तो बहुत मैं पर दिल के दर्द सहेज थे लिए.....

आँखें नम है लाश उसकी अधजली कपड़े में लपेटी हुई है.......
आप ही बताइए कैसे कह दू मुबारक हो घर में बेटी हुई है ..
है दुआ दिल से किसी की बेटी का ये अंजाम हो.....
किसी बाबुल की गुडिया के साथ ऐसा काम हो.....
दन कर दो इनको जो दहेज़ में जान लेते हैं....
लानत है ऐसे लोगों पर जो पैसों को खुदा मान लेते हैं....

था अभिमान जो वो दूर हो गया......
मेरा घरोंदा बिन बिटिया चकनाचूर हो गया...
.
मुझसे दूर उस दुनिया में आज वो तन्हा हेठी हुई है....
नहीं मुझमें ताकत कह सकू मुबारक हो घर में बेटी हुई है.....



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